यूपी में ‘चुनावी फिल्म’ चालू है, दावों की ‘बरसात’ के बीच जनता के हाथ कुछ नहीं लगने वाला!
उत्तर प्रदेश में 2022 का रण सज चुका है और रणबांकुरे सत्ता फतह करने के लिए अपने-अपने गुणा गणित में लग गए हैं। सत्ता की बारीकी समझने वाले राजनेता कोरोना काल में जनता के दिल में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कहीं ब्राह्राण सम्मेलन किया जा रहा है तो कहीं दलितों और अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों पर डोरे जा रहे हैं। जाति-धर्म की राजनीति करने से ऊपर उठकर कार्य करने का दावा करने वाले राजनीतिक दल और नेता फिर से अब इसी में डुबकी लगाने को तैयार हैं। बहाना है अमुक जाति के लोग पिछड़े हैं, फलां जाति-धर्म के लोगों को सत्ता में अभी तक भागीदारी नहीं मिली है। इसे दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। सत्ता का स्वाद चखने वाले और स्वाद की मजा ले चुके लोग बड़ी ही चतुराई से कोई न कोई ऐसा मुद्दा जरुर छेड़ दे रहे हैं ताकि जनता का ध्यान उसकी दयनीय दशा से भटकाया जा सके।
प्रदेश में सत्ता पर काबिज भाजपा और मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही समाजवादी पार्टी की तरफ से प्रदेश भर में रोजाना कोई न कोई राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं ताकि चुनाव पूर्व माहौल बनाया जा सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां अपने किए गए कार्यों का बखान विज्ञापनों द्वारा कर रहे हैं वहीं, पार्टी के बड़े नेता राजनीतिक दौरा कर रहे हैं। अभी हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी और गृह मंत्री अमित शाह ने मिर्जापुर में विकास कार्यों का उद्घाटन व शिलान्यास किया। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी आगे भी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत अन्य जिलों का दौरा कर और विकास कार्यों का उद्घाटन करते रहेंगे। वहीं, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य बड़े नेता भी अब लगभग हर महीने उत्तर प्रदेश का दौरा करेंगे। ताकि पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया जा सके।
वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी चुनाव से पहले पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए हैं। प्रदेश भर में साइकिल रैली के अलावा अन्य राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके साथ ही भाजपा सरकार की नाकामियों को जनता को बता रहे हैं। इनमें कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार का कुप्रबंधन, इलाज और ऑक्सीजन की कमी से बड़ी संख्या में हुई मौतें, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल के लगातार बढ़ रहे दाम और महंगाई जैसे मुद्दे शामिल हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जो जनता को सीधे तौर पर हिट कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सरकार के दौरान किए गए विकास कार्यों और योगी सरकार के कार्यों की तुलना कर जनता को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जनता के घावों पर मरहम लगा सकते हैं। अखिलेश यादव का आरोप है कि सीएम योगी सपा सरकार के कार्यों का क्रेडिट योजनाओं का नाम बदलकर ले रही है यहां तक कि उद्घाटन किए गए विकास कार्यों का अपना बता कर फिर से उद्धाटन या तो किए गए या फिर किए जा रहे हैं।
अब बात करते हैं ब्राह्राण वोट बैंक की। जिस पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी(सपा), कांग्रेस और सतारुढ़ भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की नजर है। हाल-फिलहाल में इस वोट बैंक जोरो से चर्चा है। कथित तौर पर ब्राह्राण मौजूदा भाजपा सरकार से नाराज हैं। इसका फायदा उठाने के लिए बसपा, सपा और कांग्रेस पुरजोर तरीके से कोशिश कर रहे हैं। पहले कांग्रेस की ब्राह्राण वोट बैंक पर मजबूत पकड़ थी जोकि समय के साथ अन्य दलों के साथ बंट गई। ब्राह्राण वोट बैंक के सहारे प्रदेश में सरकार बना चुकीं मायावती दोबारा से उसी फार्मूले पर काम करना शुरू कर चुकी हैं। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को सौंपी हैं। सतीश चंद्र मिश्रा प्रदेश के जिलों में ब्राह्राण सम्मेलन कर रहे हैं जिसे बाद में ‘प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी’ का नाम दिया गया। इन सम्मेलनों में ‘जय भीम-जय भारत’ के अलावा ‘जय श्रीराम’ और ‘जय परशुराम’ के नारे भी लगते हैं। दलित और ब्राह्राण गठजोड़ के जरिए मायावती लंबे समय से सत्ता का सूखा खत्म करना चाह रही हैं।
सतीश चंद्र मिश्र ब्राह्मण समाज की एकजुटता पर जोर देते हुए अक्सर कहते हैं कि 13 फीसद ब्राह्मण अगर 23 फीसद वाले दलित समाज के साथ मिलकर बसपा का साथ दें तो मायावती को फिर से मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक नही सकता।
सपा भी ब्राह्राणों पर डाल रही डोरे
सपा मुखिया अखिलेश यादव भी ब्राह्राणों को रिझाने के लिए पार्टी के ब्राह्राण चेहरों को मिशन पर लगा दिया है। सपा यह बताने में नही चूक रही है कि उनकी सरकार के दौरान ब्राह्राण नेताओं को मंत्री बनाकर किस तरह से सम्मान दिया गया था। बताया जा रहा है कि सपा नेता भगवान परशुराम की 108 फीट मूर्ति बनवा रहे हैं। जिसे लखनऊ में स्थापित किया जाएगा। इसकी पुष्टि सपा नेता और पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा भी कर चुके हैं। इसके अलावा महान क्रांतिकारी रहे मंगल पांडे की भी प्रतिमा प्रत्यके जिलों में लगाए जाने की बात सपा नेता करते रहे हैं।
प्रियंका गांधी की निगाहें यूपी पर
कांग्रेस भी ब्राह्राणों को एकजुट करने की कोशिश में है। प्रियंका गांधी भी यूपी मिशन में जुटी हुई हैं। कांग्रेस के कई नेता कह चुके हैं कि अगर पार्टी सत्ता में आयी तो प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री बनेंगी। हालांकि कांग्रेस आधिकारिक तौर पर सीएम पद को लेकर कोई एलान नही की है लेकिन यह बताने में भी नही चूकती कि जब पार्टी की सरकार यूपी में थी कई ब्राह्राण नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया था।
भाजपा भी ब्राह्राणों को लुभाने में जुटी
वहीं भाजपा भी ब्राह्राणों को लुभाने की कोशिश कर रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में ब्राह्राण नेताओं के साथ समाज के अन्य वर्गों के नेताओं को जगह देकर भाजपा ने बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। यूपी में पार्टी के ब्राह्राण चेहरों को भी जनता के बीच जाकर सरकार की उपलब्धियों को बताने को कहा गया है।
ओवैसी भी यूपी में दमखम दिखाने को तैयार
सपा, बसपा और भाजपा के बाद अगर किसी दल की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही तो वह है ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम)। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी में सक्रिय हैं। उनकी नजर मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर है। इसकी मुख्य वजह यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी 13 सीटों पर चौथे नंबर पर रही थी। ओवैसी की पार्टी को चौधरी अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल के बराबर वोट मिले थे। यही वजह है ओवैसी प्रदेश के छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। मेरठ, सहारनपुर, आजमगढ़, गाजियाबाद, जौनपुर, अंबेडकरनगर, मऊ, गाजीपुर, संतकबीरनगर, बलिया समेत ऐसे कई अन्य जिले हैं जहां की सीटों पर ओवैसी को संभावना नजर आ रही है। आमतौर पर मुस्लिम वोट बैंक समय-समय पर सपा और बसपा के साथ रहा है। हालांकि सपा के साथ मुस्लिम वोट मजबूत माना जाता है। अगर मुस्लिम वोट बैंक में बंटवारा हुआ तो सपा को नुकसान और भाजपा को फायदा मिल सकता है।
आम आदमी पार्टी लड़ेगी यूपी विधानसभा चुनाव
अगले साल फरवरी-मार्च में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव की तैयारी आम आदमी पार्टी (आप) भी कर रही है। दिल्ली की सत्तारूढ़ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी यूपी में विधानसभा चुनाव पहली बार लड़ेगी। हालांकि 2014 में आप यूपी में लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है लेकिन कोई सफलता हाथ नही लगी थी। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल खुद वाराणसी लोकसभा सीट से तब के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। साल 2017 में आप चुनाव नहीं लड़ी थी लेकिन भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार जरुर किया था।
दिल्ली मॉडल की तर्ज पर आप यूपी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। आप नेता संजय सिंह को केजरीवाल ने चुनाव जीतने के लिए मिशन पर लगाया है। संजय सिंह समय-समय पर यूपी का दौरा करते रहे हैं। पार्टी को मजबूत करने के लिए संजय सिंह पिछले कई सालों से यूपी में काम कर रहे हैं। केजरीवाल फ्री बिजली-पानी के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का संकेत दे चुके हैं। इसके अलावा सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का वादा आप नेता करते रहे हैं। यूपी में आप का संगठन मजबूत नही है ऐसे में केजरीवाल की पार्टी भाजपा, सपा और बसपा जैसी पार्टियों को कितना टक्कर दे पाती है यह तो समय ही बताएगा।