इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(CM Yogi Adityanath) को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका दायर

CM Yogi Adityanath
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(CM Yogi Adityanath) को उनके पद से हटाने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। यह याचिका उत्तर प्रदेश शाखा की पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) द्वारा दायर की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री(CM Yogi Adityanath) ने एक मौजूदा न्यायाधीश द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों का खुला समर्थन कर अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया है।
CM Yogi Adityanath : आरोप
यह विवाद तब शुरू हुआ जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने 8 दिसंबर 2024 को विश्व हिंदू परिषद के विधि प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ टिप्पणी की। इन टिप्पणियों की व्यापक आलोचना हुई, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ(CM Yogi Adityanath) द्वारा उनका समर्थन उनकी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन माना जा रहा है।
याचिका में उठाए गए बिंदु
PUCL ने याचिका में निम्नलिखित तर्क दिए हैं:
- शपथ का उल्लंघन
मुख्यमंत्री(CM Yogi Adityanath) ने न्यायाधीश की टिप्पणियों का समर्थन कर अपनी शपथ का उल्लंघन किया है, जिसमें संविधान की रक्षा और सभी समुदायों के प्रति निष्पक्ष सेवा का वादा शामिल है।
- जन विश्वास का ह्रास
याचिका में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई देश की धर्मनिरपेक्ष संरचना को कमजोर करती है और मुख्यमंत्री कार्यालय में जनता के विश्वास को हिलाती है।
- जवाबदेही की मांग
याचिका में सार्वजनिक पदाधिकारियों से जवाबदेही सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है, विशेष रूप से निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों के पालन के संदर्भ में।
विवादास्पद टिप्पणियां
न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कार्यक्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय पर कथित तौर पर आपत्तिजनक और विभाजनकारी टिप्पणियां की थीं। PUCL ने इन टिप्पणियों को संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया है।
कानूनी प्रभाव
यह याचिका सार्वजनिक पदाधिकारियों की निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की जिम्मेदारी पर महत्वपूर्ण सवाल उठाती है। यदि अदालत इस मामले को गंभीरता से लेती है, तो यह निर्वाचित अधिकारियों की जवाबदेही के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित कर सकती है।
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यह मामला भारत में संवैधानिक पदों की धर्मनिरपेक्षता और निष्पक्षता बनाए रखने के महत्व को उजागर करता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का इस याचिका पर निर्णय व्यापक प्रभाव डाल सकता है, जो राज्य में शासन और जनता के विश्वास को प्रभावित करेगा।