वोट सभी को चाहिए लेकिन जनता के सवालों का जवाब कोई नहीं देना चाहता!
आज के दौर में देश के वर्तमान हालात पर जरुर चर्चा होनी चाहिए। महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा किए जाने की जरुरत है। न्यूज चैनल, अखबार और पत्रिकाओं के माध्यम से जनता को सजग और आगाह भी करने की जिम्मेदारी हमीं लोगों पर है। केंद्र और राज्य सरकारें जनता के प्रति जिम्मेदारी कितनी निभानें कामयाब हुई हैं और शपथ लेने वाले उच्च पदों पर असीन जैसे- प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों समेत सभी जन प्रतिनिधि ने जनहित में क्या कार्य किए इस पर पब्लिक बहस होनी चाहिए।
इसके साथ ही पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस सिलेंडर और खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने से जनता को कितना परेशानी हो रही है। इस पर भी बहस होनी चाहिए। इनके दाम क्यों बढ़े और जनता से इससे राहत क्यों नहीं मिल रही है इसका जवाब केंद्र और राज्य सरकारों को देना चाहिए। जो जनता हर चीज खरीदने पर सरकारों को टैक्स दे रही है उसका उपयोग कितना सार्थक तरीके से किया जा रहा है यह सभी जो जानने का हक है।
अब बात करते हैं नेताओं और उनके द्वारा किए गए वादों पर। महंगाई, भ्रष्टाचार और लोकलुभावने वादे कर सत्ता में आने वाले नेताओं को यह बताना चाहिए कि पेट्रोल-डीजल और खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने के पीछे की वजह क्या है। जब वह विपक्ष में थे तो सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने उतरते थे अब क्यों वह बोल नहीं रहे हैं। मैं ऐसे कई नेताओं को जानता हूं जिनकी पार्टी सत्ता में आ गई है और वे मंत्री या संगठन में बड़े पद हैं लेकिन मौन हैं। क्या यह जनता के साथ धोखा नही है। उदाहरण के लिए अगर किसी विधायक या सांसद को बोला जाए कि उन्हें सरकार में मंत्री बनाया जाएगा। सरकार बनने के बाद मंत्री तो दूर उन्हें उनके हक से भी वंचित किया जाए तो कैसा लगेगा। अब बात करते हैं विपक्ष की। जब वे सरकार में थे तो महंगाई पर कुछ नहीं बोलते थे अब वे सड़कों पर हैं। उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए पहले वे चुप क्यों थे और अब उन्हें जनता की फिक्र क्यों हैं। कहीं वह राजनीतिक रोटी तो नहीं सेंक रहे या फिर जले पर नमक तो नहीं छिड़क रहे। वोट तो दिए अब भुगतो..।
अब बात करते हैं कोरोना के टीकाकरण की। अस्पतालों, सार्वजनिक जगहों और मीडिया संस्थानों को दिए गए विज्ञापन में मुफ्त टीकाकरण का जोरशोर से प्रचार किया जा रहा है। बहुत से लोगों की शिकायत है कि उन्हें टीके के लिए स्लाट नही मिल रहा है। अस्पताल जाने पर बोला जाता है कि टीका खत्म है। जब थोड़ा बहुत टीका आ जाता है तो भीड़ इतनी लगती है कि पूछो मत। क्या पोलिया अभियान की तरह कोरोना का टीका भी घर-घर नही लगाया जा सकता। इससे भीड़ से बचाव के साथ ही कोरोना के खतरे को भी कम किया जा सकता है। मेरे कई जानने वालों ने मुझे फोन कर कहा कि टीका लगवा दीजिए। जब हमनें किसी जानने वाले को फोन किया तो पता चलता है एक-दो दिन रुक जाओ अभी टीका खत्म है। लोगों की शिकायत है जितना विज्ञापन पर पैसे खर्च किए जा रहे हैं उतना वैक्सीन पर हो तो लोगों को परेशान न होना पड़े। वैक्सीन वास्तव में उपलब्ध है या नहीं खैर यह तो जांच का विषय है।
अरोग्य सेतु एप से लोगों को कितना फायदा हुआ यह भी सरकार को बताना चाहिए। अगर यह ऐप कोरोना से बचाव के लिए बनाया गया था तो इतनी भीषण तबाही कैसे हुई। अगर कारगर साबित नहीं हुआ तो क्यों। ताकि कमी को दूर कर भविष्य के लिए तैयारी की जा सके। अक्सर सरकारें चुनाव नजदीक होने पर मेडिकल हॉस्पिटल व प्राथमिक अस्पतालों की घोषणाएं करती रही हैं। सत्ता में आने पर उसका कितना बनवाए और कितना लाभ मिला यह भी जनता को बताना चाहिए। राज्यों में जिसकी भी सरकारें हैं अक्सर मौत के आंकड़े छिपाने का आरोप लगते हैं। इसकी भी स्वतंत्र एजेंसी से जांच होनी चाहिए। संसद में पिछले दिनों कहा गया ऑक्सीजन से कोई मौत नही हुई। जहां तक मुझे पता है जनता चाहे वह किसी भी पार्टी को वोट देती हो यह स्वीकार करने को तैयार नहीं। फिर क्यों जले पर नमक छिड़का जा रहा है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान शायद ही कोई बचा होगा जो बीच के किसी को न खोया हो। इलाज के अभाव और ऑक्सीजन की कमी से मौत के लिए सभी जिम्मेदार सरकारों को जनता से माफी मांगनी चाहिए। अगर कोई काम ठीक से हो सका तो जनता को उसकी वजह बताकर यह विश्वास दिलाना चाहिए आगे से ऐसा नही होगा।
अब बात करते हैं सरकार की योजनाओं का लाभ जनता को मिल रहा है या नहीं। आजकल बारिश का मौसम है। जगह-जगह जलभराव की शिकायतें मिल रही हैं। जिस भी क्षेत्र या शहर को स्मार्ट सिटी घोषित किया गया है वहां भी जलजमाव की शिकायतें है। उच्च पदों पर आसीन लोगों को यह बताना चाहिए कि स्मार्ट सिटी बनाने के दौरान जो वादे किए गए थे वह कहां गए। जब जनता टैक्स दे रही है तो वह समस्याएं क्यों झेले। आखिर टैक्स के पैसे कहां इस्तेमाल हो रहे हैं। रोड खराब, सरकारी अस्पताल और सरकारी स्कूलों की बदतर हालत क्यों है। जब नेता सरकारी आवास, बिजली पानी और तमाम सुविधाएं ले रहे हैं तो सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते। बीमार होने पर सरकारी अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं कराते। कुछ जाने-माने सरकारी अस्पतालों को छोड़ दें तो शेष सरकारी अस्पतालों में नेता और उनके परिजन क्यों नहीं जाते। इसका कारण भी जनता को बताना चाहिए या फिर कोई भी सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने से इनकार कर देना चाहिए। जनता के टैक्स से करोड़पति नेताओं को कोई भी सुविधा नही मिलनी चाहिए। क्योंकि वह उस योग्य हैं अपने खर्च का वहन स्वंय कर सकते हैं। ऐसा मेरा मत है। पांच साल तक सांसद, विधायक रहने के बाद मिलनी वाली सुविधाएं और पेंशन भी बंद होनी चाहिए। देश के लिए सर्वोच्य बलिदान देने वाला महान है या नेता। सेना में कार्यरत सभी को सब मुफ्त मिलनी चाहिए और सम्मान भी।
देश में बेरोजगारी दर कितनी बढ़ी इस भी चर्चा होनी चाहिए। महंगाई से परेशान जनता के लिए सरकार क्या कर रही है। यह सभी के समक्ष रखनी चाहिए। सरकारी संस्थानों को प्राइवेट के हाथों में सौंपने के पीछे की वजह भी जनता को बतानी चाहिए। क्या सरकार से ज्यादा योग्य प्राइवेट संस्थान हैं।
अब बात करते हैं विपक्ष की भूमिका पर। जासूसी कांड को लेकर विपक्ष संसद नही चलने दे रही। अच्छा होता वह पेट्रोल-डीजल की कीमतों और महंगाई को लेकर सदन में सरकार को घेरती और कीमतें कम करने के लिए सरकार पर दबाव बनाती। इससे जनता की सहानभूति भी मिलती और सहयोग भी। जासूसी किसकी हुई और किसकी नहीं हुई इससे विपक्ष शायद इसलिए परेशान है कि क्योंकि वह उससे जुड़ा मुद्दा है। तो क्या जनता के वोट से सांसद बने लोग अपने हित की बात ही सदन में रखेंगे। अगर ऐसा है तो वह शपथ क्यों लेते हैं। जब केद्र सरकार कह रही है जासूसी नहीं हुई तो उसे विपक्ष की मांगे मानने में क्या दिक्कत है। अगर कोई जासूसी नहीं हुई तो केंद्र सरकार को भी जांच करवाकर जनता को बताना चाहिए कौन सच्चा है और कौन झूठा।
इस खबर के लेखक टीवी पत्रकार मंगल यादव जी हैं जो समसामयिक मुद्दों पर अपनी राय खुल कर रखते है।