नई दिल्ली: सोमवार को दूसरे चरण के लिए 55 सीटों पर मतदान हुआ और दूसरे चरण के समापन के साथ-साथ तीसरे चरण का रण शुरू हो चुका है. 20 फरवरी को तीसरे चरण के लिए यूपी के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. यानि तीसरे चरण की चुनौती बड़ी है क्योंकि ये पहले दोनों चरण के मुकाबले चुनाव ज्यादा जिलों में है.
अगले चरण में यूपी के तीन हिस्सों अवध, पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड में चुनाव है. तीसरे चरण में पश्चिमी यूपी के पांच जिले फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस हैं जहां 19 विधानसभा सीटें हैं. अवध रीजन के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा, 6 जिले हैं जहां 27 विधानसभा सीटें हैं. और बुंदेलखंड में झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा जिले में मतदान है जहां 13 विधानसभा सीटे हैं.
क्यों जरूरी है तीसरा चरण
59 सीटों वाला तीसरा चरण हर पार्टी के लिए जरूरी है. बीजेपी पिछली बार के प्रदर्शन को बरकरार रखना चाहती है जबकि समाजवादी पार्टी पिछले नतीजों को अपने पक्ष में लाना चाहती है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 59 में से 49 सीटों पर कब्जा किया था. समाजवादी पार्टी के हिस्से 8 सीटें आई थीं. जबकि कांग्रेस और बीएसपी को सिर्फ एक-एक सीट ही मिली थी.
खास बात ये है कि तीसरे चरण में जिन 16 जिलों में चुनाव होना है उनमें से 9 जिले यादव बहुल आबादी वाले हैं. इसमें फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा और एटा जैसे जिले शामिल हैं. 2017 में 30 यादव बहुल सीटों के बाजवूद एसपी सिर्फ 6 सीटें जीत पाई थी. सत्ता में रहते हुए ये समाजवादी पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन था.
यही वजह है कि यादव बहुत जिले को साधने के लिए बीजेपी ब्रिगेड परिवारवाद पर निशाना साध रही है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी हिंदुत्व की लहर पर सवार थी, जिसका फायदा साफ दिखाई दिया था. इस बार भी मुसलमान और दंगे जैसे शब्दों की गूंज के बाद सबसे ज्यादा शोर हिजाब पर मच रहा है.
तीसरे चरण में 30 सीटें ऐसी हैं जो यादव बहुल हैं और ये सीटें फिरोजाबाद कन्नौज, मैनपुरी, इटावा जैसे जिलों में आती हैं. इसी मैनपुरी की करहल सीट से समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं. अखिलेश को जिताने के लिए चाचा शिवपाल यादव पुरानी बातें भूलकर प्रचार कर रहे हैं.