श्रीकृष्ण जन्मभूमि: सत्य,तथ्य व कथ्य-भाग-१, विस्तार से बता रहे हैं दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष पाण्डेय

 श्रीकृष्ण जन्मभूमि: सत्य,तथ्य व कथ्य-भाग-१, विस्तार से बता रहे हैं दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष पाण्डेय

मैंने वो समय भी देखा है जब उत्तर प्रदेश में 1991 में, मैं व मेरे तमाम छात्रावासी मित्र “जय श्रीराम” का जयकारा लगाने व गले में भगवा झंडा लपेटने पर सुबह से शाम तक थाने के बंदी गृह में बंद रहे व शाम 5 बजे मुंसिफ साहेब के घर पर निजी मुचलके पर छोड़े गए।

आज वो समय आया जब प्रभु राम का मंदिर बन रहा है,जहां मुलायम सिंह ने हजारों लोगों की हत्या अपने गुंडों से करवा दिया। वो भी समय आया जब तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद पर रार चल रही है और शत प्रतिशत बाबा आदि विश्वेश्वर विश्वनाथ का भव्य मंदिर बनेगा।

“हिन्दू मंदिरों का विध्वंस मुस्लिम लुटेरों,बलात्कारियों ने जीभर के किया और उन्हीं मंदिरों के मलबे से औना पौना मस्जिदें खड़ी कर लीं। तो ये है “सत्य” (Truth)”

“आज इन्हीं चोरों,लुटेरों के नाजायज वंशज 30000 से अधिक मंदिरों पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर मस्ज़िद बना उसके मालिक बने बैठे हैं ये है “तथ्य” (Facts)”

“कांग्रेस व कांग्रेसी,वामपंथी इतिहासकार, तथाकथित परजीवी से बुद्धिजीवी जो गंगा जमुनी संस्कृति की बात करते हैं। औरंगजेब सहित गजनी,गोरी,अकबर,खिलजी,तुगलक की शान में कसीदे पढ़ते हैं और उन्हीं राष्ट्र निर्माता बताते हैं,उनके लिए तमाम अवधारणाएं गढ़ते हैं ताकि आम हिन्दू मानस को दिग्भ्रमित कर मलेच्छओं के कुकर्मों को सही साबित किया जाय। इस देश के,सनातन हिन्दू धर्म के सबसे बड़े हन्ता व गद्दार यही उपरोक्त लोग हैं। इनके द्वारा बनाये विकृत अवधारणा को कहते हैं “कथ्य”(Narrative)”

अब बात करते हैं हमारे आराध्य व धर्म संस्थापक लीलाधर प्रभु श्रीकृष्ण जन्मभूमि की।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि अर्थात कंस का कारागार। कालांतर में यहां भगवान श्रीकृष्ण की पूजा शुरू हो गयी और यह कार्य सदियों से होताआ रहा है। इस मंदिर को गजनवी,गोरी,खिलजी व अन्य सुल्तानों ने लूटा और इसको ध्वंस भी करते रहे।

अंततः सन 1618 में बुंदेला राजा बीर सिंह बुंदेला ने 13.37 एकड़ जमीन पर प्रभु कृष्ण जन्मस्थली का भव्य निर्माण कराया। उस समय इस मंदिर को बनाने की लागत 33 लाख रुपये आयी थी।(ये हिसाब दस्तावेजी है,कोई हवा हवाई नहीं है)। दस्तावेजों में लिखा है कि इस मंदिर के सोने की चमक ऐसी थी कि वह चमक आगरा से दिखाई देती थी।

औरंगजेब 1658 में राजा बना और मथुरा के मंदिर की चमक जब भी दिखती वो आग बबूला हो उठता। 1669 आते आते औरंगजेब का वहशियाना और ज़ालिमाना रुतबा लगभग पूरे उत्तर भारत पर कायम हो चुका था।

सन 1669 में औरंगजेब ने फरमान जारी किया कि, काशी और मथुरा के मंदिरों को नेस्तनाबूद कर दिया जाय और वैसा ही किया गया। इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि-“औरंगजेब ने ये फरमान भी जारी किया कि,उपरोक्त मंदिर की मूर्तियों को आगरा के जहाँआरा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे रख दो ताकि नमाज़ी कुचलते हुए जाएं हिन्दू देवताओं को”।

बहरहाल, सन 1770 के गोवर्धन युद्ध में मरहठों ने मुगलिया सेना को हराया व प्रभु श्रीकृष्ण की जमीन मराठा साम्राज्य की हो गयी। सारे मुसलमान अतिक्रमण कर्ता भगा दिए गए या मार दिए गए।

सन 1803 में अंग्रेजों ने उपरोक्त भूमि को ब्रिटिश राज्य का हिस्सा बना दिया और मंदिर का सारा भूभाग बरतानिया हुकूमत के अधीन हो गया।

सन 1815 में, राजा पटनीमल (बनारस से ताल्लुक रखते थे) ने जन्मभूमि की समस्त 13.37 एकड़ जमीन अंग्रेजो से नीलामी में खरीद लिया और यह सम्पूर्ण परिसर उनकी सम्पत्ति हो गयी थी। हालांकि,कुछ मुस्लिम इस भूभाग के कुछ हिस्से पर अब अवैध कब्जा किये बैठे थे।

सन 1875 में इन्हीं मुस्लिमों ने दीवानी वाद दायर किया परन्तु हार गए। सन 1920 में पुनः मुस्लिमों ने दीवानी वाद मथुरा अदालत में डाला जिसमें वो हार गए।मुस्लिम अपील में उच्च न्यायालय गए और उनकी अपील 1935 में खारिज़ हो गयी।

आगे की कहानी कल के अंतिम भाग में!!

क्रमशः

यह कहानी/ फैक्ट दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सन्तोष पांडेय द्वारा लिखी गई है। AVS POST (Asian Voice Standard Post) की तरफ से किसी भी प्रकार का स्वीकरण और अस्वीकरण नहीं है।

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