Mokshada Ekadashi Katha 2025 : कथा, महत्व और व्रत विधि – बुरे कर्मों से मुक्ति का दिव्य अवसर
Mokshada Ekadashi Katha
Mokshada Ekadashi Katha : आज मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जो मोक्षदा एकादशी के नाम से जानी जाती है, का पावन अवसर है। वर्ष 2025 में यह व्रत 1 दिसंबर को मनाया जा रहा है। यह तिथि भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। विशेष रूप से, इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है, जब भगवतगीता का प्रादुर्भाव हुआ था। इस व्रत के पालन से न केवल वर्तमान जीवन के कष्ट दूर होते हैं, बल्कि पूर्वजों को भी नर्क से मुक्ति मिलती है। यदि आप भी इस अवसर पर कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो आइए जानते हैं इसकी पूरी कथा, महत्व और विधि।
मोक्षदा एकादशी का महत्व
Mokshada Ekadashi Katha : मोक्षदा एकादशी को ‘मोक्ष प्रदान करने वाली’ एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार, इस व्रत से व्यक्ति के हर तरह का पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह धनुर्मास की पहली एकादशी होने के कारण भी विशेष महत्व रखती है। इस दिन गीता पाठ का संकल्प लें – भगवतगीता के ज्ञान से जीवन में दिशा मिलती है। व्रत करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
मोक्षदा एकादशी कथा (Mokshada Ekadashi Katha)
Mokshada Ekadashi Katha : यह कथा पद्म पुराण से ली गई है, जहां भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बता रहे हैं। कथा इस प्रकार है:
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी (उत्पन्ना एकादशी) का वर्णन सुना। अब कृपया मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताइए। इसका नाम, विधान और फल क्या है?”
भगवान बोले, “हे युधिष्ठिर! मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला है और चिंतामणि के समान सभी कामनाएं पूर्ण करता है। इससे पूर्वजों के दुख नष्ट होते हैं। ध्यान से सुनो।”
गोकुल नामक नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में वेद-ज्ञानी ब्राह्मण निवास करते थे। राजा प्रजा का पुत्रवत पालन-पोषण करता था। एक रात्रि में राजा को स्वप्न आया कि उसके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। प्रात: वह ब्राह्मणों के पास गया और स्वप्न सुनाया। “मैंने पिता को नरक में देखा। वे कह रहे थे, ‘पुत्र! मुझे मुक्त कराओ।’ तब से मैं व्याकुल हूं। राज्य, धन, पुत्र-संपत्ति में सुख नहीं मिलता। कृपया उपाय बताइए।”
ब्राह्मणों ने कहा, “राजन! पास में पर्वत ऋषि का आश्रम है। वे भूत-भविष्य-वर्तमान जानते हैं। वे समाधान देंगे।”

Mokshada Ekadashi Katha : राजा आश्रम पहुंचा। वहां योगी-मुनि तपस्या कर रहे थे। पर्वत मुनि से प्रार्थना की। मुनि ने योगबल से राजा के पिता के पाप को जाना। “तुम्हारे पिता ने पूर्व जन्म में एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतुदान नहीं दिया। उसी पाप से नर्क प्राप्ति हुई।”
राजा ने उपाय पूछा। मुनि बोले, “मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का व्रत करो। उसके पुण्य को पिता को अर्पित कर दो। इससे मुक्ति मिलेगी।”
राजा महल लौटा और कुटुंब सहित व्रत किया। पुण्य पिता को समर्पित किया। फलस्वरूप, पिता मुक्त हो स्वर्ग गये और पुत्र को आशीर्वाद दिया।
इस कथा से स्पष्ट है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत पूर्वजों के उद्धार का सर्वोत्तम साधन है।
व्रत की विधि : कैसे करें पालन?
- संकल्प : प्रात: स्नान कर विष्णु भगवान का स्मरण करें। व्रत का संकल्प लें – “मैं मोक्षदा एकादशी का व्रत करूंगा।”
- उपवास : फलाहार या निर्जल व्रत करें। निर्जल व्रत कमजोरों के लिए अनुशंसित नहीं।
- पूजा : विष्णु मंदिर में दर्शन करें। तुलसी पत्र, फल-फूल चढ़ाएं। गीता पाठ करें।
- कथा पाठ : शाम को कथा सुनें या पढ़ें।
- पराणा : अगले दिन (2 दिसंबर 2025) प्रात: 6:57 से 9:03 बजे तक पराणा करें।
- दान : ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र दान करें।
Mokshada Ekadashi Katha : इस विधि से व्रत का पूर्ण फल मिलता है।
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जीवन में अपनाएं गीता का संदेश
Mokshada Ekadashi Katha : मोक्षदा एकादशी हमें सिखाती है कि कर्मों का फल अवश्य मिलता है, लेकिन भक्ति और व्रत से पापों का प्रायश्चित संभव है। आज से ही गीता पाठ प्रारंभ करें – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” इस मंत्र को जीवन में उतारें। यदि आपने व्रत किया है, तो कमेंट में अपनी अनुभूति साझा करें। शुभकामनाएं!