नेपाल का राजनीतिक संकट 2025 : Sushila Karki को अंतरिम नेता के रूप में क्यों चुना गया?

Nepal’s former Chief Justice Sushila Karki is the leading choice to be interim leader, a representative of the “Gen Z” protesters said
Sushila Karki : नेपाल में सितंबर 2025 में शुरू हुआ जन-आंदोलन, जिसे “GEN-Z” आंदोलन के नाम से जाना जाता है, ने देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। यह आंदोलन शुरू में सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ था, लेकिन जल्द ही यह भ्रष्टाचार, वंशवाद और आर्थिक असमानता के खिलाफ व्यापक असंतोष का प्रतीक बन गया। 10 सितंबर को, 5,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों की एक वर्चुअल बैठक के बाद, नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम नेता के रूप में नामित किया गया। यह लेख इस संकट की पृष्ठभूमि, सुशीला कार्की के व्यक्तित्व और इस नामांकन के महत्व को समझाता है।

आंदोलन की शुरुआत और संकट की जड़ें
सितंबर 2025 की शुरुआत में नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर जायज ठहराया गया। यह कदम युवाओं में बढ़ते ऑनलाइन असंतोष को दबाने का प्रयास था। लेकिन, इस फैसले ने उल्टा असर किया। नेपाल के युवा, विशेष रूप से 28 वर्ष से कम उम्र के “जेन जेड” समूह, सड़कों पर उतर आए। उनकी नाराजगी केवल प्रतिबंध तक सीमित नहीं थी; यह बेरोजगारी (लगभग 20% युवा बेरोजगार हैं) और रोजाना 2,000 से अधिक युवाओं के विदेश पलायन जैसे गहरे मुद्दों से उपजी थी।
आंदोलन ने जल्द ही हिंसक रूप ले लिया:
- 8 सितंबर: शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक हो गए; पुलिस की गोलीबारी में 19 लोगों की मौत।
- 9 सितंबर: प्रदर्शनकारियों ने संसद पर धावा बोला, सरकारी भवनों और नेताओं के घरों में आग लगाई। दबाव में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया।
- 10 सितंबर: नेपाल आर्मी ने व्यवस्था बहाल करने के लिए हस्तक्षेप किया। प्रदर्शनकारी अब सड़कों की सफाई जैसे रचनात्मक कार्यों में जुट गए, जो उनके सकारात्मक बदलाव की इच्छा को दर्शाता है।
Who is Sushila Karki (सुशीला कार्की कौन हैं?)
Sushila Karki, जिनका जन्म 7 जून 1952 को भारत-नेपाल सीमा के पास बीरतनगर में हुआ था, नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं। उनकी उपलब्धियाँ और योगदान उन्हें इस संकट में एक मजबूत उम्मीदवार बनाते हैं:
- शिक्षा: बीए (1972, महेंद्र मोरंग कैंपस), राजनीति विज्ञान में एमए (1975, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय), और एलएलबी (1978, त्रिभुवन विश्वविद्यालय)।
- न्यायिक करियर: वकील से शुरूआत कर क्षेत्रीय न्यायाधीश बनीं, फिर 2016 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुईं। 2017 में सेवानिवृत्त हुईं।
- महत्वपूर्ण फैसले: लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से नेपाली महिलाओं को अपने बच्चों को नागरिकता देने का अधिकार दिलाया। भ्रष्टाचार के खिलाफ “शून्य सहनशीलता” की नीति के लिए जानी जाती हैं।
- विवाद: 2017 में माओवादी केंद्र और नेपाली कांग्रेस ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया, जिसे जनता के विरोध और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद वापस लेना पड़ा।
- निजी जीवन: उनके पति दुर्गा प्रसाद सुबेदी नेपाली कांग्रेस के युवा नेता रहे, लेकिन कार्की स्वयं किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ीं। उन्होंने एक आत्मकथा और एक उपन्यास भी लिखा है, जो पंचायत युग में उनकी नजरबंदी से प्रेरित है।

क्यों चुनी गईं सुशीला कार्की?
वर्चुअल बैठक में Sushila Karki ने अन्य युवा नेताओं, जैसे काठमांडू के मेयर और रैपर-राजनेता बालेन शाह (35 वर्ष), को पीछे छोड़कर बहुमत हासिल किया। शाह ने बाद में उनका समर्थन किया। कार्की के पक्ष में मुख्य कारण:
- भ्रष्टाचार विरोधी छवि: उनकी सख्त नीतियों ने उन्हें जनता का विश्वास दिलाया।
- निष्पक्षता: वह किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ीं, जो प्रदर्शनकारियों की मांग थी।
- अनुभव: मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल स्थिरता और निष्पक्षता का प्रतीक रहा।
- लैंगिक प्रतीक: नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के बाद संभावित पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में वह इतिहास रच सकती हैं।
हालांकि, उनकी उम्र (73 वर्ष) और कार्यकारी अनुभव की कमी कुछ चुनौतियाँ हैं। फिर भी, प्रदर्शनकारी उन्हें एकजुट करने वाली शख्सियत मानते हैं।
वर्तमान स्थिति और भविष्य
- सेना के साथ बातचीत: 10 सितंबर को प्रदर्शनकारी नेताओं ने नेपाल आर्मी के प्रमुख जनरल अशोक राज सिगदेल से मुलाकात की और Sushila Karki के नाम का प्रस्ताव रखा। 11 सितंबर को बातचीत जारी है।
- कार्की का रुख: उन्होंने नेतृत्व करने की इच्छा जताई है, जिसमें “शांति और एक साल के भीतर चुनाव” उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने प्रदर्शन के पीड़ितों को सम्मान देने और संवाद को बढ़ावा देने का वादा किया है।
- प्रदर्शनकारियों की मांगें: नेतृत्व परिवर्तन के अलावा, वे चुनाव सुधार, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय और कुछ धार्मिक समूहों द्वारा हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग कर रहे हैं।
- सरकारी प्रतिक्रिया: राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने “शांतिपूर्ण समाधान” की अपील की और युवाओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया। कर्फ्यू धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, लेकिन बुटवल और भैरहवा जैसे शहरों में तनाव बरकरार है।

क्षेत्रीय प्रभाव
नेपाल का यह संकट दक्षिण एशिया में युवा-नेतृत्व वाले आंदोलनों (जैसे 2024 में बांग्लादेश) की एक कड़ी है। भारत, नेपाल का निकटतम पड़ोसी, इस स्थिति पर नजर रखे हुए है। Sushila Karki की बनारस से शिक्षा और भारत-समर्थक रुख सीमा तनाव को कम कर सकता है।
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Sushila Karki का नामांकन नेपाल के उग्र युवाओं और इसकी संस्थाओं के बीच एक उम्मीद की किरण है। यदि उनकी नियुक्ति होती है, तो वह देश को स्थिरता और चुनाव की ओर ले जा सकती हैं, जिससे गहरा संकट टल सकता है। यह आंदोलन नेपाल की युवा पीढ़ी की ताकत और उनके बेहतर भविष्य की चाह को दर्शाता है।