Bihar Politics में प्रशांत किशोर का नया विवाद : दोहरी Voter ID का आरोप
Bihar Politics : Prashant Kishor
Bihar Politics : बिहार की राजनीतिक मंच पर नई हस्ती के रूप में उभर रही जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार का विवाद उनके राजनीतिक सफर को थोड़ा ठंडा करने वाला साबित हो रहा है। उन पर दो अलग-अलग राज्यों – बिहार और पश्चिम बंगाल – में Voter ID card रखने का गंभीर आरोप लगा है। यह मुद्दा न केवल किशोर की छवि को प्रभावित कर रहा है, बल्कि Bihar Assembly Election 2025 से पहले राजनीतिक दलों के बीच तीर-तलवार की जंग को और तेज कर रहा है।
विवाद की जड़ : दो जगह नाम दर्ज, एक जगह वोट का अधिकार?
प्रशांत किशोर, जो लंबे समय तक राजनीतिक प्लान बनाने के रूप में सक्रिय रहे, अब खुद मैदान में हैं। जन सुराज पार्टी के बैनर तले वे बिहार में एक नई राजनीतिक लहर लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में सामने आया एक बड़ा खुलासा उनके लिए मुसीबत बन गया। आरोप है कि उनका नाम बिहार के रोहतास जिले के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के भवानीपुर विधानसभा एरिया की वोटर लिस्ट में भी दर्ज है। बंगाल वाले पते पर 121 कालीघाट रोड का जिक्र है, जो तृणमूल कांग्रेस के मुख्यालय के ठीक बगल में स्थित है।
Bihar Politics : यह कोई छोटी-मोटी गलती नहीं मानी जा रही। Election Commission of India के नियमों के मुताबिक, एक व्यक्ति केवल एक ही स्टेट में वोटर के रूप में रजिस्टर हो सकता है। दुबारा रजिस्टर न केवल गैरकानूनी है, बल्कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 31 का उल्लंघन भी माना जाता है। इसके लिए एक साल की जेल कैद, जुर्माना या दोनों ही हो सकता है, 28 अक्टूबर को रोहतास के जिला निर्वाचन अधिकारी ने किशोर को नोटिस जारी कर तीन दिनों के अंदर सफाई मांगा। यह नोटिस चुनावी मौसम में एक राजनीतिक बम की तरह फटा।

प्रशांत किशोर का पक्ष : तकनीकी खामी या राजनीतिक साजिश?
Bihar Politics : किशोर ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए इसे चुनाव आयोग की लापरवाही बताया है। उनके अनुसार, वे मूल रूप से बिहार के निवासी हैं और 2019 से ही रोहतास जिले के करघार विधानसभा क्षेत्र में वोटर हैं। 2020-2022 के बीच पश्चिम बंगाल में रहते हुए उन्होंने वहां रजिस्ट्रेशन कराया था, क्योंकि वे तृणमूल कांग्रेस के चुनावी स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर सक्रिय थे। लेकिन 2022 में बिहार लौटने के बाद उन्होंने आयोग को सूचित किया और बंगाल का कार्ड रद्द करने का आवेदन भी कर दिया। फिर भी, पुरानी एंट्री सिस्टम में लटक गई, जो एकीकृत EPIC नंबरों की वजह से आम समस्या है।
किशोर का तेवर बयांबकारी है : “अगर मैंने कोई गलती की है, तो मुझे गिरफ्तार कर लो और दोषी साबित करो।” वे इसे “राजनीतिक शगूफेबाजी” करार देते हैं और कहते हैं कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया में आयोग को ही ऐसी डुप्लिकेट एंट्रीज हटानी चाहिए थीं। किशोर की टीम भी यही रेखांकित करती है कि यह कोई जानबूझकर उल्लंघन नहीं, बल्कि सिस्टम की कमजोरी है। 31 अक्टूबर तक का समय दिया गया है जवाब के लिए, और फिलहाल मामला लंबित है। बिहार सहित 12 राज्यों में चल रही SIR प्रक्रिया की अंतिम वोटर लिस्ट 7 फरवरी 2026 को जारी होगी, तो शायद तब और स्पष्टता आए।
Bihar Politics : जन सुराज के लिए चुनौती या मौका?
Bihar Politics : यह विवाद बिहार की राजनीति के लिए एक नया ट्विस्ट है। BJP और अन्य सत्ताधारी दल इसे विपक्षी खेमे के खिलाफ हथियार बना रहे हैं। अमित मालवीय जैसे नेता इसे किशोर की “डबल स्टैंडर्ड” वाली राजनीति का प्रतीक बता रहे हैं। वहीं, किशोर के समर्थक इसे साजिश का हिस्सा मानते हैं, खासकर जब जन सुराज पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतर रही है। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है – कुछ यूजर्स किशोर को “चालाक स्ट्रैटेजिस्ट” कह रहे हैं, तो कुछ आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। यहां तक कि टीवी डिबेट शो में भी यह गर्म मुद्दा बन गया है।
जन सुराज के लिए यह दोधारी तलवार है। एक तरफ, यह पार्टी की नई छवि को धक्का पहुंचा सकता है। किशोर का फोकस ग्रामीण स्तर पर कैंपेनिंग पर है, जहां वोटरों को विश्वास दिलाना जरूरी है। लेकिन दूसरी तरफ, अगर किशोर इस मुद्दे को सुलझा लेते हैं, तो यह उनकी “सिस्टम के खिलाफ लड़ाई” वाली इमेज को मजबूत कर सकता है। बिहार चुनाव में जहां RJD, JDU और BJP का त्रिकोणीय संघर्ष है, वहां जन सुराज जैसे नौजवान विकल्प को जगह बनानी है। यह विवाद उनके लिए टेस्ट केस साबित हो सकता है।

लोकतंत्र की मजबूती या राजनीतिक खेल?
Bihar Politics : प्रशांत किशोर का यह विवाद हमें याद दिलाता है कि भारतीय लोकतंत्र में voter id जैसी छोटी-छोटी चीजें कितनी महत्वपूर्ण हैं। आयोग का सिस्टम डिजिटल हो रहा है, लेकिन अभी भी खामियां बाकी हैं। किशोर के मामले में अगर यह साबित हो जाता है कि कोई गलती नहीं हुई, तो यह आयोग की जवाबदेही पर सवाल खड़े करेगा। वहीं, अगर उल्लंघन पाया गया, तो राजनीतिक करियर पर असर पड़ेगा।
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बिहार के वोटर अब इंतजार कर रहे हैं – क्या यह विवाद जन सुराज को कमजोर करेगा या किशोर की छवि को और चमकाएगा? समय ही बताएगा। लेकिन एक बात पक्की है : Bihar Politics में कभी सुस्ती नहीं आती। आपका क्या ख्याल है? कमेंट्स में बताएं!