सावित्रीबाई फुले!(Savitribai Phule) महिलाओं को प्रगति के मार्ग पर लाने वाली एक मजबूत सोच…

 सावित्रीबाई फुले!(Savitribai Phule) महिलाओं को प्रगति के मार्ग पर लाने वाली एक मजबूत सोच…

Savitribai Phule

सावित्रीबाई(Savitribai Phule) का जीवन परिचय

 

सावित्रीबाई(Savitribai Phule):-

बात उन दिनों की है जब महिलाएं शिक्षा की ओर अपने कदम बढ़ा रहीं थी और देश आधुनिकता के दौर में डुबकी लगाने को तैयार था। 19वीं शताब्दी का, यह वह समय था जब शिक्षा और समाज दोनों ही तेजी से बदल रहे थे। उसी समय महिलाओं के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह जैसी अनेक कुरीतियों के काले बादलों के पीछे से एक बुलंद आवाज बनकर सामने आईं, सावित्रीबाई फुले।

सावित्रीबाई फुले(Savitribai Phule) , भारत की वह पहली महिला शिक्षिका थी, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से शिक्षा को भी बदला और समाज को भी। छोटे से गांव में पैदा हुई सावित्रीबाई ने अपने पति दलित चिंतक, समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर सामाजिक चेतना फैलाई और अंधविश्वास तथा रूढ़ियों की बेड़ियां को तोड़ने के लिए एक लंबा संघर्ष किया।

3 जनवरी, 1891 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में जन्मीं सावित्री बाई (Savitribai Phule) फुले नारीवाद की सच्ची पहचान हैं। उनके ही संघर्ष का परिणाम है जो आज महिलाएं सिर उठाकर पढ़-लिख रही हैं और अपने सपने पूरे कर रही हैं। उनका जीवन जितना महान था उतना ही कठिनाइयों से भी भरा था। उनके संघर्ष की दास्तां मेरे इन शब्दों से भी पूरी नहीं हो सकती।

“वो एक नारी शक्ति का एहसास थीं,
जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है”

सावित्रीबाई(Savitribai Phule) की छोटी सी उम्र में शादी हो जाने के बाद भी भारत की पहली शिक्षिका बनीं

जिस उम्र में हम गुड़िया और खिलौने से खेलते हैं उस छोटी सी उम्र में उनकी शादी हो गई लेकिन पढ़ाई के प्रति उनका जज्बा और लगन कभी कम नहीं हुआ।

ज्योतिबा फुले के साथ उनके विवाह के समय जहां वह एक अनपढ़ की श्रेणी में खड़ी थीं, तो वहीं उनके पति केवल तीसरी कक्षा तक पढ़े थे। जिस दौर में वह पढ़ने का सपना देख रहीं थी, उस दौर में महिला की शिक्षा पर एक कड़ा पहरा था, उन्हें पढ़ना तो दूर किताबें देखने की भी अनुमति नहीं थी। उस वक्त की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया, वह दौड़कर आए और किताब हाथ से छीनकर घर से बाहर फेंक दी। उनके पिता और उस समय का समाज, शिक्षा को केवल उच्च जाति के पुरुषों का अधिकार मानते थे, दलित और महिलाओं का शिक्षा ग्रहण करना पाप समझा जाता था। बस, फिर क्या था बचपन से ही दृढ़ निश्चयी सावित्री बाई ने वह किताब वापस लाईं और प्रण किया कि वह एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी।

जीवन संघर्ष

उन दिनों महिलाओं को निम्न दर्जे का नागरिक समझा जाता रहाथा, यही कारण है कि उनकी जिंदगी को खाना बनाने और वंश को आगे बढ़ाने तक सीमित रखा गया था, लेकिन इस पुरानी और रूढ़िवादी सोच को बदने के लिए सावित्री बाई ने पढ़ना शुरू किया और इतना ही नहीं वह भारत की प्रथम महिला शिक्षिका भी बनीं। उन्होंने 2 साल के टीचर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। प्रथम कोर्स उन्होंने एक अमेरिकी मिशनरी सिंधिया द्वारा संचालित अहमदनगर में संस्थान और दूसरा कोर्स पुणे के एक नॉर्मल स्कूल से लिया।

-पत्थर खाने के बाद भी हौसला नहीं छोड़ा

सन् 1848 में महज 17 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई फुले(Savitribai Phule) ने पुणे में देश के पहले महिला स्कूल की स्थापना की और उसके बाद 18 स्कूल खोले। लेकिन उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ कहते हैं जब वह स्कूल में पढ़ाने जाया करती थीं तो उन पर लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे, परंतु चट्टान से भी मजबूत सावित्रीबाई(Savitribai Phule) ने इस समस्या को भी हल कर लिया। वह अपने थैले में एक अतिरिक्त जोड़ी कपड़े ले जाया करती थीं और कीचड़ से गंदे कपड़ों को बदल लिया करती थीं।

सावित्रीबाई फुले(Savitribai Phule) एक कवयित्री भी थीं। उन्हें मराठी की आदि कवयित्री के रूप में अपने आप को साबित किया। सावित्रीबाई(Savitribai Phule) ने अपने पति के साथ मिलकर बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक केयर सेंटर भी खोला था। इसमें बलात्कार से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को बच्चों को जन्म देने और उनके बच्चों को पालने की सुविधा दी जाती थी। उन्होंने महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की।

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जब एक महान आत्मा सद्गति को प्राप्त हुईं

10 मार्च, 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करते हुए ये महान आत्मा सद्गति को प्राप्त हुईं और सदा के लिए पंचभूत में लीन हो गईं। आज भी भारत ही नहीं विश्व भर की महिलाओं के लिए उनका अदम साहस और हौसला एक आदर्श है और युगों तक वह सभी महिलाओं की प्रेरणा रहेंगी। हम उन्हें तहे दिल से प्रणाम करते हैं। वास्तव में सावित्रीबाई फुले(Savitribai Phule) ने ये साबित किया है कि…

सफलता की कहानी किसी कलम से नहीं…
हौंसलों से लिखी जाती है…

                           Author:- Tarini

Nimmi Chaudhary

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