पड़ताल- पश्चिम यूपी में बीजेपी के सामने ये 5 बड़ी चुनौतियां
नई दिल्ली: यूपी में चुनाव बेहद दिलचस्प होने लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य फैक्टर ने यूपी में बीजेपी की ‘एज’ को बिगाड़ दिया है। अभी तो नुकसान हो चुका है। अगर पहले दौर में पश्चिमी यूपी की 58 सीटों की बात की जाए तो यहां बीजेपी ‘खाई’ में लग रही है। ये 5 फैक्टर महत्वपूर्ण हैं।
1- बीएसपी प्रमुख मायावती की ‘धीमे चलो वाली स्ट्रैटेजी’ कहीं न कहीं बीजेपी के खिलाफ जा रही है। बीएसपी के कट्टर वोट बैंक को मायावती का मुखर न होना खलने लगा है और इसके चलते बीजेपी विरोधी दलित वोट भी एसपी को ओर ‘शिफ्ट’ होता लग रहा है। शहरी इलाकों में भले ही अभी भी बीजेपी के पक्ष में रुझान दिख रहा है, लेकिन किसानों वाली बेल्ट में समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन की ओर ‘एज’ है। इसको बराबर कर पाना बीजेपी के लिए अब आसान नहीं होगा, क्यों वोटिंग में ज्यादा समय नहीं बचा है। दूसरा फैक्टर है मुस्लिम वोटर्स की रणनीतिक चुप्पी साध लेना। औवेसी की भड़काने वाली तकरीरें हों या बीएसपी की मुसलिम प्रत्याशी उतारने की रणनीति। मुसलिम वोटर्स इस बार सीधे बीजेपी को हरा पाने की क्षमता केवल समाजवादी पार्टी में ही देख रहा है। जिस कन्फ्यूजन से बीजेपी को हर बार फायदा मिलता रहा है, इस बार वो बहुत ही कम लग रहा है। यानी बीएसपी ने अगर कोई बड़ी रणनीति नहीं अपनाई तो बीजेपी और एसपी-आरएलडी गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होगा। शायद इसीलिए योगी को 80 बनाम 20 फीसदी का जुमला उछालना पड़ा ।
2- किसान आन्दोलन के चलते मुसलिम और जाट वोटर्स के बीच बनी खाई काफी हद तक भर चुकी है। गुर्जर बेल्ट में अभी भी बीजेपी को मुखर समर्थन है, लेकिन जाट बेल्ट अब आरएलडी के साथ दिख रही है। इसका सीधा फायदा अखिलेश यादव को होता लग रहा है। लगता नहीं है कि बीजेपी के पास अब कोई चमत्कारिक रणनीति बची है। मोदी और योगी के भाषण कुछ कमाल कर पाएं तो अलग बात है।
3- गन्ने के दाम योगी सरकार ने बढाए तो लेकिन काफी देर से। इसका गुस्सा भी गन्ना बेल्ट के किसानों में है। अब बीजेपी डैमेज कंट्रोल के लिए सब कुछ कर रही है, लेकिन लगता नहीं है कि इतने कम समय में ये हो पाएगा। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में जब ऑक्सीजन संकट आया था, उसमें योगी सरकार को काफी डैमेज हुआ था, लेकिन लगता है कि उसको कंट्रोल कर लिया गया। हालांकि विपक्ष के समर्थक अभी भी लोगों को गंगा में तैरते शवों की याद दिला रहे हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर की जा रही है, इसका भी असर पड़ सकता है।
4- पिछले पांच साल में बीजेपी के चुने गए मंत्री और विधायक भी लोगों को इतने पावरफुल नहीं दिखाई दिए, जिसके कारण कार्यकर्ताओं में तनिक असंतोष है। इसलिए अगर किसान आन्दोलन की तर्कों से निपटने के लिए बीजेपी के कार्यकर्ता इस बार बहुत ज्यादा मुखर नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि लगता है आरएसएस की मदद से बीजेपी आखिरी तक इस कमी से पार पा लेगी। लेकिन ये भी एक फैक्टर तो है ही।
5- चुनाव के नतीजों का आंकनल करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन बीएसपी के वोटर्स का रुझान आखिरी तक क्या रहता है, ये भी काफी कुछ तय करेगा। पश्चिमी यूपी के गांवों में दस फीसदी और शहरों में करीब 15 से 18 फीसदी तक दलित वोटर का रुझान महत्वपूर्ण होगा। अगर ये मायावती के साथ बना रहा तो त्रिकोणीय मुकाबले के कारण बीजेपी का नुकसान कम होगा। उसके बाद बीजेपी के भीतर ये ताकत तो है कि वो ‘डैमेज कंट्रोल’ कर सकती है। सो देखते रहिए।
यह पड़ताल वरिष्ठ पत्रकार नवीन पाण्डेय के फेसबुक वॉल से ली गई है वो हाल ही में पश्चिमी यूपी के दौरे से लौटे हैं। आप सभी इस पर अपनी राय कमेंट के जरिए दे सकते हैं।