Emergency Anniversary : भारत में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर

Emergency Anniversary
Emergency Anniversary : 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में एक काला अध्याय शुरू हुआ था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। इस दिन की वर्षगांठ आज भी भारतीय राजनीति में गहरी बहस और विवाद का कारण बनती है। 2025 में, आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ ने एक बार फिर राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस को जन्म दिया है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है, बल्कि आज के राजनीतिक परिदृश्य में लोकतंत्र, स्वतंत्रता और शासन की स्थिति पर भी सवाल उठाता है।
Emergency का ऐतिहासिक संदर्भ
1975 में, इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आंतरिक अशांति का हवाला देते हुए इमरजेंसी लागू किया था। इस दौरान नागरिक स्वतंत्रताएं निलंबित कर दी गईं, प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई, और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। यह दौर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक दाग के रूप में देखा जाता है, जब संवैधानिक अधिकारों को कुचला गया और सत्ता का दुरुपयोग अपने चरम पर था।

इमरजेंसी को 21 मार्च 1977 को समाप्त किया गया, लेकिन इसके प्रभाव आज भी BJP और राजनीति में गूंजते हैं। इस अवधि ने न केवल तत्कालीन सरकार की छवि को प्रभावित किया, बल्कि यह भी सिखाया कि लोकतंत्र कितना नाजुक हो सकता है।
2025 में Emergency की अनिवर्सरी और राजनीतिक बहस
इस वर्ष, Emergencyकी 50वीं अनिवर्सरी ने राजनीतिक दलों के बीच एक नया वैचारिक युद्ध शुरू किया है। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष, दोनों ने इस अवसर का उपयोग अपने-अपने एजेंडों को आगे बढ़ाने के लिए किया। जहां सत्तारूढ़ दल ने आपातकाल को “लोकतंत्र की हत्या” के रूप में चित्रित करते हुए विपक्ष पर हमला बोला, वहीं विपक्ष ने वर्तमान सरकार पर “अघोषित आपातकाल” लागू करने का आरोप लगाया।
सत्तारूढ़ दल का दृष्टिकोण
सत्तारूढ़ दल ने इस अनिवर्सरी को एक अवसर के रूप में लिया है ताकि जनता को आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों की याद दिलाई जाए। उनके नेताओं ने रैलियों और सोशल मीडिया के माध्यम से दावा किया कि उनकी सरकार लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल जैसी स्थिति को दोबारा आने से रोकने के लिए उनकी नीतियां और सुधार आवश्यक हैं।

विपक्ष का जवाब
दूसरी ओर, विपक्ष ने वर्तमान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज के समय में प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, और विपक्षी नेताओं के उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इमरजेंसी की आलोचना करने वाली सरकार स्वयं उन नीतियों को अपना रही है जो लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती हैं। विपक्षी नेताओं ने जनता से अपील की कि वे इतिहास से सबक लें और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ एकजुट हों।
Emergency का सामाजिक प्रभाव
Emergency की अनिवर्सरी न केवल राजनीतिक बहस का विषय है, बल्कि यह सामाजिक चेतना को भी प्रभावित करता है। युवा पीढ़ी, जो इस दौर को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख पाई, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से इसकी कहानियों और प्रभावों को समझ रही है। कई गैर-राजनीतिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने इस अवसर पर लोकतंत्र की रक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाए हैं।

क्या है भविष्य का रास्ता?
इमरजेंसी की अनिवर्सरी हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जो नागरिकों की सक्रिय भागीदारी और सतर्कता पर निर्भर करती है। यह समय है कि हम इतिहास से सीखें और यह सुनिश्चित करें कि सत्ता का दुरुपयोग दोबारा न हो।
- नागरिक जागरूकता: लोगों को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
- संस्थागत मजबूती: स्वतंत्र प्रेस, निष्पक्ष न्यायपालिका, और मजबूत विपक्ष लोकतंत्र के आधार हैं। इनका संरक्षण आवश्यक है।
- संवाद और सहमति: राजनीतिक दलों को वैचारिक मतभेदों के बावजूद राष्ट्रीय हित में एकजुट होने की जरूरत है।
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इमरजेंसी की 50वीं अनिवर्सरी ने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास को फिर से जीवंत कर दिया है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना की स्मृति है, बल्कि एक चेतावनी भी है कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए सतत प्रयासों की आवश्यकता है। इस वर्षगांठ ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि हमारा समाज और राजनीति कितनी दूर आ चुके हैं, और अभी कितना रास्ता तय करना बाकी है।