Shrimad Bhagwat Katha: भगवान कृष्ण की दिव्य प्रेम और लीलाएं,उज्जैन से द्वारका की यात्रा
उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात को, कृष्ण ने अपनी अद्वितीय मुरली से 84 कोस ब्रजमण्डल को आवाहन दिया। जैसे-जैसे गोपियाँ ने कृष्ण की ध्वनि सुनी, वे अपने कार्यों को छोड़कर उनके पास आईं। उनका प्रेम कृष्ण के प्रति असीम था, जैसे कृष्ण के पादों की धूल के कण के समान।
कृष्ण ने महसूस किया कि गोपियों के दिल में गर्व की रेखा हो गई है, तो उन्होंने क्षणिक रूप से अपने से दूर हो जाया। लेकिन जब गोपियाँ अपने प्रेम में उल्लासित होकर उन्हें पुकारीं, उनकी यह पुकार गोपी गीत के रूप में आई। कृष्ण, उनके अतल प्रेम के साथ, फिर से रास के नृत्य में शामिल हो गए।
शिव के भोलेनाथ रूप में भी एक बार वहां आये और पार्वती माता के साथ रास खेले, जिससे उन्हें “गोपेश्वर महादेव” का नाम मिला।
छह महीने तक, गोपियों ने कृष्ण के साथ रास का आनंद लिया, और फिर अपने घरों को लौट आईं। इसके बाद, श्री प्रभु प्रिया जी ने कृष्ण के महान दुर्भाग्यवान भक्त कंस के वध की कथा सुनाई, जिससे मथुरा के लोगों को मुक्ति मिली।
भगवान ने अपने माता-पिता, वासुदेव और देवकी, को कारागार से छुड़ाया और फिर मथुरा में आकर अपनी शिक्षा लेने का आश्रय लिया। उन्होंने अवंतिका पुरी, जिसे उज्जैन के रूप में भी जाना जाता है, में गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की।
इस पवित्र यात्रा का सफर जारी रहा, जब कृष्ण ने अपने साथ बलराम जी को लिए द्वारका नामक नगर की स्थापना की, छोड़कर युद्ध भूमि से होकर।
बलराम के विवाह के बाद, भगवान कृष्ण का खुद का विवाह उनकी प्रियतमा, देवी रुक्मिणी के साथ हुआ, और यह आयोजन भगवान कृष्ण की दिव्य प्रेम और उनके भक्तों के आदर्श का प्रतीक बन गया। पंडाल में खुशी के साथ-साथ भक्तों का सजीव भावना से समर्पण हुआ, और उनका प्रेम अपार था।
इस दिव्य यात्रा के साथ-साथ, भगवान कृष्ण का उज्जैन से द्वारका का सफर, दिव्य प्रेम की दिनों से दिन तक चलने वाली शक्ति और उपनिषदी गोपियों के भगवान के प्रति प्रेम के बने सबूत के रूप में है।