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સાધક કોન હૈ? – योगी कौन है
*🛕 सत्संग / कथा ज्ञानामृत 🛕*
*साधक कौन है।*
साधक वही है जो अपने आपको साधकर रखता है।
साधक वही है जो मन वचन कर्म से शालीन आचरण करने वाला होता है।
कुछ विशेष मंत्र का सवा लाख जप कर लिया या फिर किसी विशेष स्तोत्र का पाठ कर लिया या फिर अन्य कोई भी छोटी मोटी साधना कर ली उससे कोई भी व्यक्ति साधक नहीं बन जाता है।
जब आप सही अर्थ में साधक बनते है तब आपके अंदर विवेक का उदय होता है। आप सत्य और असत्य के बीच का भेद भलीभांति जान पाते है। और दुनिया की सुनने के बाद ये पता नहीं चलता मगर आपके अंदर के आत्म चिंतन से ही ये आपको पता चल जाता है।
साधक वही है जो धीरे धीरे अपने स्वयं के विकारों से मुक्त होने की यात्रा पर आगे बढ़ रहा है। आज जितना है उससे अधिक मुक्त होने पर अग्रसर होता है। वो धीरे धीरे अपने विकारों से ऊपर बढ़ता चला जाता है।
साधक वही है जो अपने कर्म के प्रति सभान होने लगता है। उसका प्रत्येक कर्म उसके विवेक और उसके ज्ञान से युक्त होता है। जो अपने प्रत्येक कर्म को अन्य की भाती बिना सोचे समझे नहीं करता जाता है।
साधक वही है जो अपने इंद्रियों को नियंत्रण से मुक्त होने लगता है और वो स्वयं अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। उसके लिए दिन प्रतिदिन वो स्वयं जागृत होते जाता है। उसका नियंत्रण इतना सटीक होता है कि फिर उसे कोई भी प्रलोभन तोड़ नहीं सकता है।
साधक वही है जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र होते जाता है। जो धीरे धीरे सभी प्रकार के विचारों या पूर्वग्रह से मुक्त होकर अपनी स्वतंत्र विचारधारा को जन्म देता है। इसे ऐसा समझे की वो अपने हृदय के ग्रन्थ को खोलता है और उसी का अनुसरण करने लगता है।
साधक एक निष्ट होता है। उसके इष्ट और इष्ट सेवा निरंतर और एक निष्ठा के साथ चलती है। कोई भी उसकी श्रद्धा को चलित नहीं कर सकता है। कोई भी उसके मार्ग को रोक नई सकता है। क्योंकि उसकी निष्ठा ही उसका आधार होता है।
साधक वही है जो केवल कल्पनाएं नहीं करता है अपितु अपने पथ पर हर पल हर समय चलता है जब तक उसे मूल हासिल नहीं होता है। जब तक उसे मूल तत्व प्राप्त नहीं होता है या उसका उद्देश्य सिद्ध नहीं होता है तब तक बिना रुके जो परिश्रम करने के पथ पर अग्रसर होता है।
साधक वही है जो अपने गुणों को खोता नहीं है अपितु दूसरों के सद्गुण स्वयं धारण कर लेता है । जो दिन प्रतिदिन अपने सद्गुणों में वृद्धि और दुर्गुणों का त्याग करता है।
साधक वही है जो सहजता और सरलता को धारण करते जाता हैं। जो आपके पास होता है तो आप अपने समग्र अस्तित्व को खोकर उसके अस्तित्व से युक्त हो जाते है। जो अपनी सरलता और सहजता से आपके समग्र अस्तित्व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। जहा आप पूर्ण रूप से मुक्त होकर अपने आपको प्रगट कर सकते है।
साधक बनें। यदि नहीं है तो उसकी और आगे बढ़ने की यात्रा शुरू करें। एक दिन अवश्य ही आप पहुंच जाएंगे।