3 जनवरी, 1891 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में जन्मीं सावित्री बाई (Savitribai Phule) फुले नारीवाद की सच्ची पहचान हैं। उनके ही संघर्ष का परिणाम है जो आज महिलाएं सिर उठाकर पढ़-लिख रही हैं और अपने सपने पूरे कर रही हैं। उनका जीवन जितना महान था उतना ही कठिनाइयों से भी भरा था। उनके संघर्ष की दास्तां मेरे इन शब्दों से भी पूरी नहीं हो सकती।
–जीवन संघर्ष उन दिनों महिलाओं को निम्न दर्जे का नागरिक समझा जाता रहाथा, यही कारण है कि उनकी जिंदगी को खाना बनाने और वंश को आगे बढ़ाने तक सीमित रखा गया था, लेकिन इस पुरानी और रूढ़िवादी सोच को बदने के लिए सावित्री बाई ने पढ़ना शुरू किया और इतना ही नहीं वह भारत की प्रथम महिला शिक्षिका भी बनीं। उन्होंने 2 साल के टीचर प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। प्रथम कोर्स उन्होंने एक अमेरिकी मिशनरी सिंधिया द्वारा संचालित अहमदनगर में संस्थान और दूसरा कोर्स पुणे के एक नॉर्मल स्कूल से लिया।